बातूनी

बातूनी 

उस शाम मुझे एक लिफाफा जरूरी छोड़ना था। पोस्ट ऑफिस बंद होने का समय हो रहा था। सामने से एक सज्जन साइकिल पर जाते दिखे। मैंने उन्हें कहा "जरा एक लिफाफा लेकर इस कागज को उस में रखकर यह पता लिखकर डाक में छोड़ दीजिए



ने कहा "सहर्ष"। बस उनके सहर्ष ने मेरा हर्ष तभी से छीना है, वह तो आज तक वापस नहीं मिला। 

दूसरे दिन वे दिख गए, तो मैंने पूछा "वह चिट्ठी डाल दी थी?"
आप बताइए इसका जवाब ज्यादा से ज्यादा कितना लंबा हो सकता है? यही कि जी हां साहब मैंने आपकी चिट्ठी टिकट लगाकर और पता लिखकर लाल लेटर बॉक्स में छोड़ दी थी। बस। इससे ज्यादा नहीं हो सकता।

पर उन्होंने यह जवाब दिया "मैं पोस्ट ऑफिस पहुंचा साब। देखता हूं की पोस्ट ऑफिस बंद हो चुका है। मैं बड़ा परेशान। मैं कहूं कि करूं तो क्या करूं। आपकी चिट्ठी जरूरी है। मैंने कहा चाहे अकाश टूट जाए और पृथ्वी फट पड़े पर आप का लिफाफा जरूर डालूंगा। अब मैं कहूं कि जाऊं तो कहां जाऊं। इतने में साब मेरी नजर पड़ी सहानी मेडिकल स्टोर पर। वहां साहनी बैठा था। साहनी मेरा कई साल पुराना दोस्त है। आप नहीं जानते उसके फादर मेरे फादर के बड़े अच्छे दोस्त थे । बाद में उसके फादर को एक दिन दिल का दोरा पड़ा । ये साब आजकल दिल की बीमारी का भी बड़ा फैशन चल पड़ा है । तो मैने कहा यार साहनी लिफाफा दे । उसने कहा कि लिफाफा तो नहीं है टिकट है । मैंने कहा ला टिकट ही दे । मैंने साहब टिकट तो हाथ में कर ली । अब लिफाफा ? मैं कहूं कि लिफाफा कहां से लाऊं । मुझे घबराहट होने लगी थी । आखरी डाक निकलने का वक्त हो रहा था ।

लिफाफा नहीं गया तो क्या होगा ? हे भगवान तू ही रास्ता बना । मैं तो इस गाड़ी से लिफाफा छोड़ कर ही रहूंगा । 
पर लिफाफा मिले कहां ? अचानक साब राजू दिखा । वही राजू जो किताबों का एजेंट है । 
उसके हाथ में बसता था । मैंने कहा यार लिफाफा दे । उसने कहा लिफाफा तो है पर उस पर फर्म का नाम लिखा है मैंने कहा कोई बात नहीं मैं उसे काट दूंगा । मैंने लिफाफा ले लिया जेब में हाथ लगाया तो कलम नहीं । मैंने कहा 3 अजीब बेवकूफ हूं । काम ले लिया और कलम नहीं लाया । भाग्य से राजू के पास पैन था तो मैंने उससे मांग लिया ।अब मैं कहूं की लिखूं तो किस पर रखकर लिखूं ? मैंने राजू से बैग मांगा उस पर लिफाफा रखा और उसकी फर्म का नाम काटकर पता लिख दिया । मैं भागा पोस्ट ऑफिस की तरफ । मैं पहुंचा की डाकिया चिट्टियां निकालकर लेटर बॉक्स बंद कर रहा था । मैंने कहा कि कि भाई साहब यह चिट्ठी भी जरूरी है इसे डाक में शामिल कर लीजिए । वह भला आदमी था उसने लिफाफा ले लिया तब साहब मेरा मन हल्का हुआ ।
यह तो मैंने अभी बहुत ही संक्षेप में लिखा है। उन्होंने लगभग आधा घंटा इस विवरण में लगाया। मैंने कसम खाई कि आगे से मुझे कोई काम नहीं कहूंगा। मगर जितना का पाप कर चुका हूं उसका फाल तो भुगतना ही था। मेरा काम करके उन्होंने मेरे ऊपर हमेशा के लिए अधिकार जमा लिया था। रास्ते में उनका घर पड़ता था। मैं निकलता और उन्हें दिखा जाता, तो वह बहुत खुश होगा मुझसे पूछते कि कहां जा रहे हैं? 

मैं नहीं समझ पाता कि आमतौर पर लोग ऐसा क्यों पूछते हैं? क्या वो पुलिस के आदमी है या खुफिया विभाग के हैं, या चाचा होते हैं कि जानना चाहते हैं कि तुम कहां जा रही हो? यह असल में रुक कर बात करने की भूमिका है। जिसे जल्दी जाना है वह भी होशियारी करता है कहता है कहीं नहीं बस ऐसे ही । 

सवाल-कहां जा रहे हैं
जवाब-कहीं नहीं बस ऐसे ही

वाह वाह! कितना सुंदर सवाल और उससे भी बढ़िया जवाब।

मगर लोग पूछ रही हैं और जवाब भी मिलते हैं।

मैं जब रुक जाता और कहता यूं ही जरा सिविल सर्जन से मिलने जा रहा हूं। बस ने मुझे पकड़ लेते-अच्छा, डॉ गुप्ता से? वे हमारे चाचा के बड़े अच्छे दोस्त थे। नागपुर में पास पास बंगला था। हमारे घर आते, मुझे गोद में लेकर खिलाते थे। मिलते हैं तो कहते हैं क्यों बेटा भूल गए? 


कभी मैं कहता प्रोफेसर तिवारी से मिलने जा रहा हूं। वे कहते अच्छा अच्छा तिवारी जी वह तो हमारे फादर इन लॉ के बड़े पुराने दोस्त हैं दोनों साथ पढ़ते थे। 

मैं किसी का भी नाम ले लूं वे उनके चाचा मामा ससुर या पिता का दोस्त निकल आता और वे 10:15 मिनट उसके संबंधों में बताते रहते। 

एक दिन कहूंगा डाकू जालम सिंह से मिलने जा रहा हूं। तब वे शायद झटके में कहेंगे अच्छा डाकू जालम सिंह । वे तो हमारे फादर के बड़े अच्छे दोस्त थे। दोनों साथ मिलकर डाका डाला करते थे। 


फिर एक दिन कहूंगा भगवान सेेेेेे मिलने जा रहा हूं ।हूंूू। अच्छाा अच्छाा। वह तो हमारेे चाचा के बड़े अच्छेेेे दोस्त हैं ।
दोनों स्वर्ग में साथ काम किया करते थे। आप मेरा नाम उन्हें बताइए वह मुझे पहचान लेंगे। मुझे तो भगवान ने गोद में खिलाया है। 


अब अपनी के हालत है कि उस रास्ते को छोड़कर करीब आधा मिलकर चक्कर लगाकर जाता हूं। एक दिन वह बाजार में मिल गए। कहने लगे, आजकल आप दिखाई नहीं देते। मैंने कहा बाहर निकलता ही नहीं घर में ही रहता हूं। उन्होंने कहा "अच्छा तो फिर घर पर ही दर्शन करूंगा"

मैं कहकर फस गया। अगर वह घर पर आकर दर्शन करने आ पहुंचे तो घंटों बैठेंगे। अब फिर उनके घर के सामने से ही निकलना शुरू कर दिया। 




उन सज्जन से अब मुझे डर लगता है। वह मुझे दूर से देखते हैं तो उनका चेहरा खिल उठता है। और मैं कांप जाता हूं। वे घंटे भर से कम में नहीं छोड़ते। विपासा कर हाथ पकड़ लेते हैं और एक पाव से आपका पांव दबा लेंगे और घंटों भर बकते जाएंगे। हम तो राह देख रहे हैं कि कोई कर्नल जिम कॉर्बेट पैदा होगा जो उनसे हमारी रक्षा करेगा। 


















Comments

  1. 😅😅😅😅👌👌👌👌👌🤣🤣🤣🤣🤣🤣🤣

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